तू मेरा दर्द ज़रा कम कर दे
आ मेरा क़त्ल, बे-रहम कर दे
ऐसे लूटा कि कुछ बचा ही नहीं
ग़र बचा है तो वो सितम कर दे
जाने क्यों तुमको तराशते हैं हाथ
आख़िरी बार फिर क़लम कर दे
हम तो हैं सब्र-तलब, ख़ौफ़-ए-उदू तुमको है
सब ग़ुनाह नाम मेरे लिख के उजागर कर दे
इतना बरसाओ अब्र अबकी बार
सुर्ख़ से सब्ज़ हर सुख़न कर दे
तेरी तस्वीर सूख जाएगी
आँख की कोर ज़रा नम कर दे…