पुराने दिन

वज़ह मिली ना कोई अपना दिल जलाने की

सुबह से शहर का अख़बार लेके बैठ गए

बड़ा हसीन ज़माना था ग़ज़ब के लोग थे जब

दिन ढले चाँद जैसे यार लेके बैठ गए

पुर-सुकूनी थी, कैफ़ियत थी, ग़र्म-ज़ोशी थी

और कहाँ अब दिल-ए-बीमार लेके बैठ गए

उड़ा तो हम भी किया करते थे हवा में कभी

हमें शराब, इश्क़, यार लेके बैठ गए

बहुत दिनों से कोई शैर मुक़म्मल ना हुआ

तुम्हारी याद, ग़र्म चाय और इतवार लेके बैठ गए

उसूल छोड़कर पैसे कमाने निकले थे

एक का तीन, दो के चार लेके बैठ गए

डुबाए जिसने सफ़ीने अमन परस्ती के

आज वो मुल्क की पतवार लेके बैठ गए

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Brajesh Singh

16-Jul-2019