कितनी क़िश्तों में गुज़ारी,
कितनी बे-ख़्वाहिश गयी
ज़िंदगी तू चीज़ क्या है ..?
अब तो समझा दे मुझे
ना कभी कोई शिक़ायत,
ना कभी कोई ग़िला
क्यों नहीं मेरी हुयी तू ?
अब तो बतला दे मुझे
धूप भरी चट्टानों जैसा,
कितना लम्बा रस्ता है ?
कौन डगर मंज़िल पहुँचेगी..?
अब तो बतला दे मुझे
तह कर-कर के रख लेता हूँ,
रात तुम्हारी यादों की
काँधे पर जो चाँद टिका है..
अब तो दिखला दे मुझे
गवाँ चुका हूँ सारे मोहरे,
रिश्तों की शतरंजों के
जीत सकूँ एक दाँव आख़िरी..
अब तो सिखला दे मुझे